Rajasthan Me Kisan Andolan
बिजौलिया किसान आन्दोलन
- बिजोलिया भीलवाड़ा में आता है।
- ऊपरमाल की जागीर राणा सांगा ने अशोक परमार को उपहार में दी थी। बिजोलिया ऊपरमाल का सबसे बड़ा कस्बा था। जिसमें 79 गांव आते थे।
- सर्वाधिक किसान धाकड़ जाति के थे।
- बिजोलिया में भू राजस्व की पद्धति लांता व कुंता कहलाती थी। (खड़ी फसल का आकलन करके कर निर्धारित करने वाली पद्धति)
- बिजोलिया के जागीरदार राव कृष्ण सिंह किसानों पर अत्याचार करता है। व 84 प्रकार की लागते ली जाती है।
बिजौलिया किसान आन्दोलन आन्दोलन की शुरुआत
- 1897 में गिरधारीपुरा गांव में गंगाराम धाकड़ के घर पर मृत्यु भोज ( नुक्ता) के आयोजन के समय नानजी पटेल और ठाकरी पटेल को प्रतिनिधि बनाकर शासक के पास भेजा जाता है।
- मेवाड़ का महाराणा फतेहसिंह बिजोलिया में हमीद हुसैन के नेतृत्व में जांच आयोग भेजता है यह जांच आयोग कोई कार्यवाही नहीं करता है।
- बिजोलिया आंदोलन के प्रारंभिक नेतृत्व कर्ता
- साधु सीतारामदास
- फतेहकरण चारण
- पंडित ब्रह्म दत्त
- राव कृष्ण सिंह सन 1903 में चँवरी कर लगा देता है। (इस कर के अनुसार ऊपर माल जागीर में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पुत्री के विवाह के समय ₹5 चँवरी कर के रूप में ठिकाने को देना पड़ता था।
- सन् 1906 राव कृष्ण सिंह की मृत्यु हो जाती है। नया जागीरदार राव पृथ्वी सिंह को बनाया जाता है जो 1906 में तलवार बंधाई कर लगाता है (नया जागीरदार बनने पर लिया जाने वाला कर या उत्तराधिकारी कर)।
बिजौलिया किसान आंदोलन से पथिक का जुड़ना
- उत्तर भारत में सशस्त्र क्रांति की जिम्मेदारी भूप सिंह (बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश) और गोपाल सिंह खरवा (अजमेर) को दी जाती है।
- दोनों को कैद करके टॉडगढ़ जेल अजमेर में रखा जाता है जहां से भूप सिंह फरार हो जाता है और मेवाड़ पहुंचता है और अपना नाम बदलकर विजय सिंह पथिक रख लेता है।
- ओझडी़ गांव (चित्तौड़) में हरिभाई किंकर द्वारा संचालित विद्या प्रचारिणी सभा से जुड़ता है।
- इस संस्था के वार्षिक उत्सव में साधु सीतारामदास, विजय सिंह पथिक से मिलता है और बिजोलिया आंदोलन से जुड़ने का आग्रह करता है।
- सन् 1915 ई. में साधु सीताराम दास द्वारा किसान पंच बोर्ड की स्थापना की जाती है
- सन् 1916 ई. में विजय सिंह पथिक बिजोलिया किसान आंदोलन से जुड़ते हैं।
- सन् 1917 ई. में विजय सिंह पथिक द्वारा ऊपरमाल पंच बोर्ड की स्थापना की जाती है जिसका प्रथम सरपंच मन्ना पटेल को बनाया जाता है।
- सन् 1918 ई. में विजय सिंह पथिक गांधी जी से मिलते हैं और गांधी जी को बिजोलिया आंदोलन के बारे में बताते हैं।
गांधी जी अपने निजी सचिव महादेव सरदेसाई को बिजोलिया भेजते हैं।
- सन् 1919 ई. में बिजोलिया में 3 सदस्यीय जांच आयोग बिंदु लाल भट्टाचार्य के नेतृत्व में भेजा जाता है।
- विजय सिंह पथिक के द्वारा “वर्धा” (महाराष्ट्र) में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की जाती है।
- सन् 1920 ई. में राजस्थान सेवा संघ का मुख्यालय अजमेर को बनाया जाता है।
- सन् 1922 ई. में AGG होलेंड किसानों के 84 में से 35 कर माफ कर देता है।
- सन् 1923 ई. में विजय सिंह पथिक गिरफ्तार होता है।
- सन् 1927 ई. में ऊपरमाल पंच बोर्ड के सदस्य जमीनें छोड़ने का फैसला लेते हैं।
- सरकार जमीनों की बोली लगा देती है जमीन उठाने वाले मिल जाते हैं।
- इस असफलता की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए विजय सिंह पथिक आंदोलन से अलग हो जाता है।
आन्दोलन से जुड़े अन्य सदस्य
1. रामनारायण चौधरी
2. माणिक्य लाल वर्मा
3. जमनालाल बजाज
4. हरिभाऊ उपाध्याय
- साधु सीतारामदास और रामनारायण चौधरी ने ऊपरमाल से डंको नामक हस्तलिखित समाचार पत्र निकाला।
- विजय सिंह पथिक के बाद आंदोलन का नेतृत्व माणिक्य लाल वर्मा करते हैं।
- आंदोलन के लिए वर्मा ने पंछीड़ा नामक गीत गाया।
- सन् 1941 ई. में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी. विजय राघवाचार्य और किसानों के मध्य तत्कालीन राजस्व मंत्री मोहन सिंह मेहता की मध्यस्था से समझौता हो जाता है।
- सन् 1897 से 1941 तक बिजोलिया आंदोलन कुल 44 वर्षों तक चला।
- यह भारत का सबसे लंबे समय तक चलने वाला आंदोलन है।
- यह पूर्णतया अहिंसात्मक आंदोलन था।
आंदोलन से जुड़े समाचार पत्र
1. प्रताप ➤ गणेश शंकर विद्यार्थी का कानपुर से प्रकाशित समाचार पत्र।
2. राजस्थान केसरी ➤ विजय सिंह पथिक का वर्धा महाराष्ट्र से प्रकाशित समाचार पत्र
3. नवीन राजस्थान ➤ अजमेर से प्रकाशित समाचार पत्र
4. तरुण राजस्थान ➤ अजमेर से प्रकाशित समाचार पत्र (तरुण राजस्थान का संपादक रामनारायण चौधरी था)।
बेंगू किसान आन्दोलन
- बेंगू पहले भीलवाड़ा में आता था। वर्तमान में यह चित्तौड़गढ़ में है।
- सन् 1921 ई. में मेनाल के भैरूकुंड (भीलवाड़ा) नामक स्थान पर किसान सभा का आयोजन करते हैं और फैसला लेते हैं कि आंदोलन का नेतृत्व विजय सिंह पथिक करेंगे।
- विजय सिंह पथिक नेतृत्व स्वीकार करते हैं और प्रत्यक्ष नेतृत्व करने के लिए रामनारायण चौधरी को भेजते हैं।
- आंदोलन का प्रत्यक्ष नेतृत्व कर्ता राम नारायण चौधरी था। जबकि आंदोलन का अप्रत्यक्ष नेतृत्व कर्ता विजय सिंह पथिक था।
- सन् 1922 ई. में बेंगू का ठाकुर अनूप सिंह किसानों से समझौते कर के कुछ कर माफ कर देता है।
- मेवाड़ की सरकार इसे वाॅल्शैविक समझौता कहकर रद्द कर देती है।
- बेंगू को मुनसरमात (ठिकाने पर ठिकानेदार की जगह नियुक्त कर्मचारी राज क) में ले लिया जाता है। और ठाकुर अनूप सिंह को नजरबंद कर दिया जाता है।
- बेंगू का मुंसरिम भ्रष्टाचार और दमन के लिए मशहूर लाल अमृतलाल को नियुक्त किया जाता है।
- यह किसानों पर अत्याचार करता है। अत्याचारों की जांच के लिए बेंगू में ट्रेंच आयोग को भेजा जाता है।
- सन् 1923 ई. में गोविंदपुरा गांव में किसान सभा का आयोजन कर रहे थे ट्रेंच आयोग के आदेश पर गोलियां चला दी जाती है।
- रूपा जी धाकड़ और कृपा जी धाकड़ नामक दो व्यक्ति शहीद हो जाते हैं।
- 1925 ई. में बेंगू किसान आंदोलन समाप्त हो जाता है।
बूंदी किसान आन्दोलन
- बिजोलिया और बेंगू के किसानों के समान बूंदी राज्य के लोगों को भी लगभग 25 प्रकार की लाग-बाग जागीरदार को देनी पड़ती थी।
- बरड़ बिजौलिया के पास बूंदी का बिहड़ भाग है।
- बरड़़ या बूंदी किसान आंदोलन का नेतृत्व पंडित नैनू राम शर्मा करते हैं
- 2 अप्रैल 1923 को बूंदी के सभी किसान डाबी नामक स्थान पर सभा करते हैं।
- सभा के मध्य ही राज्य पुलिस द्वारा वहां पर एकत्रित सभी लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चला दी जाती हैं।
- इस गोलीकांड में झंडा गीत गाते हुए नानक जी भील और देवीलाल गुर्जर शहीद हो गए।
- नानक जी भील की याद में माणिक्य लाल वर्मा ने अर्जी शीर्षक नामक गीत गाए।
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अलवर का किसान आन्दोलन
- अलवर में राजपूत और ब्राह्मण किसानों को करों में छूट दी गई थी।
- सन् 1924 में अलवर का शासन जयसिंह कर बढ़ाकर 40% कर देता है ये कर राजपूत और ब्राह्मण किसानों से भी लिए जाते हैं।
- आंदोलन के नेतृत्व कर्ता ➤ गोविंद सिंह व माधो सिंह
- अलवर में भू राजस्व की पद्धति इजारा पद्धति थी। जिसके तहत ऊंची बोली बोलने वाले को निश्चित भूमि निश्चित अवधि के लिए दे दी जाती थी।
- अलवर आंदोलन का मुख्य केंद्र नीमूचाणा नामक गांव था।
- 14 मई 1925 में नीमूचाणा में किसान शांतिपूर्वक सभा कर रहे थे। राज्य के सिपाही गोलियां चला देते हैं काफी किसान मारे जाते हैं।
- रामनारायण चौधरी ने इस हत्याकांड को नीमूचाणा हत्याकांड कहा।
- महात्मा गांधी ने इस हत्याकांड को जलियांवाला बाग हत्याकांड से भयंकर बताते हुए इसे दोहरा हत्याकांड की संज्ञा दी।
मेव किसान आन्दोलन ( अलवर )
ध्यान रहे – |
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मेव प्रारंभ में हिंदू थे परंतु औरंगजेब के शासनकाल में ये मुसलमान बन गए। मेवों के रीति रिवाज व संस्कृति अभी भी हिंदुओं के समान ही है मेवों के द्वारा आबादित क्षेत्र मेवात कहलाता है। |
- कर के विरोध में।
- जंगली सूअरों के विरोध में – अलवर के शासक ने संरक्षित शिकार का क्षेत्र बना रखे थे जिन्हें सैंधे कहा जाता था। जहां जंगली सुअरों के शिकार पर पाबंदी थी। सूअर किसानों की फसलों को बर्बाद करते थे।
- अलवर के मेव किसान आंदोलन के नेतृत्व कर्ता मोहम्मद हांदी थे।
- सन् 1923 में अलवर में स्थापित मुस्लिम संस्था अंजुमन – खादिम – उल – इस्लाम और गुड़गांव का मुस्लिम नेता चौधरी यासीन खाँ के जुड़ने से आंदोलन सांप्रदायिक हो जाता है।
- मेवों की मांगे उर्दू भाषा को बढ़ावा देने, मदरसे खुलवाने आदि की हो जाती है।
- सन् 1933 में अंग्रेज जय सिंह को ब्रिटेन भेज देते है और आंदोलन समाप्त हो गया हो जाता है।
बीकानेर किसान आन्दोलन
- बीकानेर राज्य में 1929 ईस्वी में कृषक आंदोलन शुरू हुआ जिसका प्रमुख कारण किसानों से पानी कर (आबियाना) तो पूरा लिया जाता था परंतु फसल के लिए पूरा पानी नहीं दिया जाता था।
बीकानेर किसान आंदोलन को दो भागों में बांट सकते हैं –
1. गंग नहर से संबंधित समस्याओं के कारण हुआ
2. दूसरा बीकानेर के जागीरी गांवों से जुड़ा आंदोलन
- 5 दिसंबर, 1925 ईस्वी को स्वयं गंगा सिंह जी के हाथों गंग नहर की नींव रखी गई। 26 अक्टूबर 1927 को इसका विधिवत रूप से शुभारंभ हो गया। गंग नहर के आसपास के क्षेत्रों में सिंचाई प्रारंभ हो गई।
- सन् 1929 में जमींदारा एसोसिएशन की स्थापना होती है जिसका अध्यक्ष – दरबारा सिंह को बनाया जाता है।
- सन् 1932 में बीकानेर सेफ्टी एक्ट लागू होता है जिसमें जनता के लिए दमनकारी नीतियां थी।
- इसे बीकानेर का काला कानून कहा गया है।
- 1936 में कर नहीं देना गैर जमानती अपराध घोषित होता है।
- सन् 1937 में बीकानेर किसानों के लिए सर्वप्रथम आवाज जीवन राम चौधरी व बाबू मुक्त प्रसाद ने उठायी।
आंदोलन के नेतृत्व कर्ता – मेघाराम वेद, चौधरी कुंभाराम आर्य, चौधरी हनुमान सिंह आर्य, पंडित कन्हैयालाल
दुधवा खारा आंदोलन (बीकानेर)
- दुधवा खारा आंदोलन सन् 1944 से 45 तक चला।
- इसके नेतृत्व कर्ता चौधरी हनुमान सिंह आर्य थे।
- दुधवा खारा में ठाकुर सूरजमल किसानों पर अत्याचार करता था।
- किसानों के लिए हनुमान सिंह 1944, 1945 और 1946 कई बार जेल गया। 65 दिन की भूख हड़ताल भी की।
रायसिंह नगर की घटना
- 1 जुलाई 1946 में रायसिंह नगर में किसान जुलूस निकालते हैं जुलूस पर गोलियां चला दी जाती है। बीरबल सिंह नामक युवक शहीद हो जाता है।
- 17 जुलाई को शहीद बीरबल सिंह दिवस मनाया जाता है।
- 6 जुलाई को रायसिंहनगर के किसान “किसान दिवस” मनाते हैं।
शेखावाटी / सीकर किसान आन्दोलन
- सन् 1918 में शेखावटी के किसान चिरवा समिति का गठन करते हैं। जिसका उद्देश्य अकाल राहत कार्य करवाना और किसानों की सहायता करना था।
- सन् 1922 में सीकर का शासक कल्याण सिंह कर 25% से बढ़ाकर 50% कर देता है। और कल्याण सिंह ने जरीब का आकार छोटा कर देता है।
शेखावाटी किसान आंदोलन के नेतृत्व कर्ता –
1. राम नारायण चौधरी
2. चौधरी हरलाल सिंह खर्रा
3. ठाकुर देशराज
4. पंडित ताड़केश्वर शर्मा
5. चौधरी नेतराम
6. किशोरी देवी
- सन् 1924 में शेखावाटी के किसान झुंझुनू में किसानों का सम्मेलन करते हैं इस में भाग लेने के लिए पंडित मदन मोहन मालवीय आते हैं।
- सन् 1925 में रामनारायण चौधरी के प्रयासों से शेखावाटी किसान आंदोलन की आवाज लंदन के हाउस ऑफ कॉमंस तक पहुंचाती है और लंदन से प्रकाशित समाचार पत्र डेली हेराल्ड में शेखावाटी किसान आन्दोलन के बारे में छपता हैं।
- ठाकुर देशराज की सलाह पर सन् 1931 में क्षेत्रीय जाट सभा का गठन होता है।
- सन् 1934 में सीकर के पलथाना गांव में जाट प्रजापति महायज्ञ का आयोजन होता है।
कटराथल गांव की घटना
- 25 अप्रैल 1934 को महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के विरोध में कटराथल गांव में 10,000 से अधिक महिलाएं एकत्रित होती है।
इसके नेतृत्व कर्ता – किशोरी देवी w/o चौधरी हरलाल सिंह खर्रा
- सम्मेलन में मुख्य वक्ता का काम उत्तमा देवी w/o ठाकुर देशराज ने किया।
- अन्य सहयोगी – दुर्गा देवी और रामप्यारी
- सन् 1934 में कल्याण सिंह हनुमानपुरा गांव में आग लगवा देता है।
जयसिंहपुरा हत्याकांड
- 21 जून, 1934 को जयसिंह पुरा गांव में खेतों में काम कर रहे किसानों पर डूंडलोद के ठाकुर का भाई ईश्वर सिंह गोलियां चला देता है।
- ईश्वर सिंह पर शेखावटी के किसान जयपुर रियासत में मुकदमा दायर करते हैं ईश्वर सिंह को डेढ़ साल की सजा होती है।
- यह पहला केस था जिसमें किसान किसी दोषी को सजा दिलाने में सफल हुए।
खूड़ी गाँव की घटना
- 25 मार्च 1935 ईस्वी को खूड़ी गांव में ठाकुरों के द्वारा किसानों की बारात में राजपूतों ने दूल्हे को घोड़ी पर बैठा कर तोरण मारने से रोक दिया था।
- इस अपराध को करने वालों को सजा देने के बजाय ठिकानेदार ने किसानों पर ही अत्याचार किए।
कूदन हत्याकांड
- कूदन गांव में कर वसूली के लिए कैप्टन वैब द्वारा गोलियां चला दी जाती है। जिसमें कई लोग घायल हो गए।
मास्टर प्यारेलाल गुप्ता
- मूलतः अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) का था।
- कार्य क्षेत्र – चीडा़वा
- सन् 1922 में अमर सेवा समिति की स्थापना करता है।
- मास्टर प्यारेलाल गुप्ता को चिड़ावा का गांधी कहा जाता है।
शेखावाटी के पंचपाणे
1. मण्डावा
2. नवलगढ़
3. मलसीसर
4. डुण्डलोद
5. बिसाऊ
नोट ➤ शेखावाटी ब्रिगेड की स्थापना 1835 में हुई। जिसका मुख्यालय झुंझुनू में है।
मारवाड़ किसान आन्दोलन
तौल आन्दोलन
- कारण
- तौल के विरोध में। ( मारवाड़ में 80 तौलेे का सैर था जिसे अंग्रेज 100 तौलेे का करना चाहते थे )।
- मादा पशुओं के निष्कासन के विरोध में
- नेतृत्व कर्ता – चांदमल सुराणा और जयनारायण व्यास
- सन् 1923 में स्थापित मारवाड़ हितकारिणी सभा के नेतृत्व में आंदोलन चलता है।
- सितंबर 1924 में तौल आंदोलन को सफलता मिलती है।
डाबडा़ हत्याकांड
- 13 मार्च 1947 ईस्वी को डीडवाना के पास डाबड़ा नमक गांव में किसान सभा का आयोजन कर रहे थे।
- वहां के जागीरदारों ने सिपाहियों की सहायता से गोलियां चलाई। जिसमें चुन्नीलाल, रामूराम, रूंधाराम जाट सहित 12 लोग मारे जाते हैं।
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