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राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम: 1857 ki kranti
1857 ई. में राजस्थान में ही नहीं अपितू पूरे भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध भावना जाग उठी थी। इसके मुख्य कारण सन 18 सो 48 ईस्वी में लॉर्ड डलहौजी जो उस समय भारत का गवर्नर जनरल था, उसने भारत में अंग्रेजी राज्य के विस्तार को बढ़ाने के लिए एक नए सिद्धांत ‘डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्सेज / राज्य के विलय की नीति’ को लागू किया जिसके अनुसार यदि किसी राजा या नवाब की नि:संतान मृत्यु हो जाए तो उसके राज्य, रियासत को ब्रिटिश भारत का अंग बना दिया जाता था।
इस नीति के तहत सर्वप्रथम 1848 इसवी में सतारा को, बाद में 1853 ईस्वी में नागपुर, 1854 ईसवी में झांसी व बरार, अवध, कर्नाटक आदि रियासतों को ब्रिटिश भारत में 1856 ईसवी तक विलय कर लिया गया। इसी कारण देसी राज्य के शासकों के मन में ब्रिटिश विरोधी भावना जाग उठी।
भारत में क्रांति का सूत्रपात – मेरठ की छावनी से भारत में क्रांति की शुरुआत – 10 मई, 1857 ईस्वी से क्रांति का कारण – कारतूस सूअर या गाय की चर्बी की आशंका राजस्थान में क्रांति की शुरुआत – 28 मई, 1857 ईसवी से क्रांति का समय – 2:50-3:00 बजे (नसीराबाद छावनी) |
1857 की क्रान्ति के कारण –
1. सामाजिक कारण –
भारतीय समाज में कुप्रथा व्याप्त थी। जैसे- सती प्रथा, बाल विवाह, इत्यादि।
अंग्रेज इन पर रोक लगाने की कोशिश करते हैं तथा भारतीय समाज इसका विरोध करता है।
2. आर्थिक कारण –
ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने आती है इससे भारत का घरेलू और कुटीर उद्योग प्रभावित होता है।
3. धार्मिक कारण –
1813 ई. के चार्टर एक्ट के तहत ईसाई मिशनरियों को भारत में ईसाई धर्म के प्रचार की छूट दे दी।
4. राजनैतिक कारण –
वैलेजेली की सहायक संधि नीति – इस संधि के नियम व शर्तें थी। जिस शासन से संधि हुई है उसके यहां अंग्रेजों की सेना रहेगी जिसका खर्चा वह शासक देगा। उस शासक के दरबार में अंग्रेजों को का एक प्रतिनिधि रहेगा।
लॉर्ड डलहौजी की गोद निषेध नीति।
5. सैनिक कारण –
अंग्रेजों की सेना में भारतीय और अंग्रेज दोनों सैनिक थे। लेकिन भारतीय सैनिकों के साथ वेतन, भत्ते और पदोन्नति को लेकर भेदभाव होता था।
6. तात्कालिक कारण –
भारत में 1857 की क्रांति का मुख्य कारण एनफील्ड राइफल चलाने का था। एनफील्ड राइफल के बारे में भारतीय सैनिकों में अफवाह फैली कि इस बंदूक के कारतूस पर सूअर और गाय की चर्बी लगी होती है। जिससे भारत में निवास करने वाले हिंदू और मुस्लिम सैनिकों का धर्म भ्रष्ट होता है इसलिए इस बंदूक का सर्वप्रथम विरोध 26 फरवरी 1857 को बुरहानपुर (यूपी) छावनी में किया गया।
1857 की क्रांति की प्रथम घटना
पश्चिम बंगाल की बैरकपुर छावनी में स्थित 34 वी नेटिव इन्फेंट्री के सैनिक मंगल पांडे पर दबाव डाला जाता है कि वह एनफील्ड राइफल को चलाएं। दबाव डालने पर मंगल पांडे 29 मार्च 1857 को अंग्रेज अधिकारी ह्यूरसन और बाग की हत्या कर देता है।
पश्चिम बंगाल की बैरकपुर छावनी में स्थित 34 वी नेटिव इन्फेंट्री के सैनिक मंगल पांडे पर दबाव डाला जाता है कि वह एनफील्ड राइफल को चलाएं। दबाव डालने पर मंगल पांडे 29 मार्च 1857 को अंग्रेज अधिकारी ह्यूरसन और बाग की हत्या कर देता है।
मंगल पांडे को फांसी की सजा रॉबर्ट हुक नामक अंग्रेज द्वारा सुनाई गई।
8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी गई।
- मंगल पांडे 1857 की क्रांति का प्रथम शहीद था।
- भारत में विद्रोह की शुरुआत 10 मई, 1857 को मेरठ (यूपी) से हुई।
- क्रांति की पूर्व निर्धारित तिथि 31 मई 1857
- क्रांति के प्रतीक चिन्ह
- कमल का फूल [सैनिक छावनी और शासकों के लिए]
- चपाती [आम जनता के लिए]
ध्यान रहे – 10 मई,1857 को ही यूपी स्थित मेरठ की छावनी के सैनिकों ने विद्रोह की शुरुआत कर दी थी।
वहां से यह सैनिक 11 मई को दिल्ली में स्थित लाल किले पर पहुंचे जहां पर इन्होंने बहादुर शाह जफर द्वितीय को 1857 की क्रांति का नेता चुना। बहादुर शाह जफर के बारे में कहा जाता है कि ”हे बहादुर तू कितना बदनसीब है कि तुझे दफनाने के लिए 2 गज जमीन भी अपने देश में नहीं मिली । ”
क्योंकि बहादुर शाह जफर की मृत्यु रंगून (म्यांमार /ब्रह्मा) में 10 मई 1862 ईस्वी को हुई थी । बहादुर शाह जफर का जन्म दिल्ली में हुआ 1837 इसी में वह मुगल बादशाह बना जिसे हम अंतिम मुगल शासक कहते हैं।
राजपूताना के शासक मराठों, पिंडारीयों, आसपास के शासकों, भाई – बाट प्रथा से परेशान होकर ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि करते हैं।
सहायक संधि –
राजपूताना में सर्वप्रथम सहायक संधि सन् 1803 में भरतपुर के राजा रणजीत सिंह ने की।
अधीनस्थ पार्थक्य की संधि –
राजपूताना में सबसे सफल संधि अधीनस्थ पार्थक्य की संधि हुई।
– सर्वप्रथम 1817 में करौली के हरवक्ष पाल ने की।
– 1817 में टोंक व कोटा ने की।
– सर्वाधिक संधियां सन् 1818 में हुई।
– सन् 1819 में जैसलमेर के मूल राज ने की।
– सबसे अंत में संधि 1823 में सिरोही के शिव सिंह ने की।
सन् 1832 में राजपूताना रेजिडेंसी की स्थापना होती है । जिसका अधिकारी ए.जी.जी. (एजेंट टू गवर्नर जनरल) को बनाया गया।
– प्रथम ए.जी.जी. – मिस्टर लॉकेट
– विद्रोह के दौरान ए.जी.जी. – जॉर्ज पैट्रिक लोरेंस / पैट्रिक लॉरेंस।
– रेजीडेंसी का मुख्यालय अजमेर था। जो अंग्रेजों का शस्त्रागार भी था
– सन् 1845 से गर्मियों में मुख्यालय माउंट आबू शिफ्ट हो जाता था।
रियासत | शासक | P.A (Poltical Agent) |
---|---|---|
मारवाड़ | तख़्त सिंह | मैक मोसन |
आमेर | रामसिंह | ईडन |
मेवाड़ | स्वरुप सिंह | शावर्स |
कोटा | राव रामसिंह | बर्टन |
भरतपुर | जसवंत सिंह | मॉरिसन |
बीकानेर | सरदार सिंह | _ |
विद्रोह के दौरान राजपूताने में कुल 6 सैनिक विद्रोह के दौरान राजपूताने में कुल 6 सैनिक छावनीयां थी। इनमें से 4 में विद्रोह होता है 2 में नहीं होता है।
1. नसीराबाद (अजमेर) – सबसे शक्तिशाली सैनिक छावनी।
2. ब्यावर (अजमेर) – यहां विद्रोह नहीं होता है।
3. मेरवाड़ा (उदयपुर) – यहांं भी विद्रोह नहीं होता है ।
4. एरिनपुरा (पाली) – यह छावनी मारवाड़ के अन्तर्गत आती थी।
5. नीमच (मध्य प्रदेश) – इसकी देखरेख की जिम्मेदारी मेवाड़ रियासत की थी।
6. देवली (टोंक)
1857 की क्रांति की खबर मेरठ से राजस्थान के एजेंट टू गवर्नर जनरल पैट्रिक लॉरेन्स को भिजवाई गई। लॉरेंस को यह खबर 19 मई, 1857 ईसवी को मिली।
नसीराबाद में विद्रोह (28 मई, 1857 ई.)
- नसीराबाद छावनी का निर्माण 25 जून, 1818 ई में किया गया।
- राजस्थान में विद्रोह की शुरुआत 28 मई, 1857 ई को नसीराबाद की छावनी से होती है।
- नेतृत्व कर्ता – बख्तावर सिंह
- 27 मई, 1857 ईस्वी को 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के 1 सैनिक बख्तावर सिंह के प्रश्नों का अंग्रेजों ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया।
- सैनिकों ने उत्तेजित होकर 28 मई 1857 ईस्वी को दिन में 3:00 बजे विद्रोह कर दिया।
- इस सैनिक टुकड़ी का साथ 30वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री टुकड़ी ने दिया।
- इस विद्रोह में क्रांतिकारियों ने “मेजर स्पोटिस वुड एवं न्यूबरी” नामक अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर दी।
- छावनी पर विद्रोहियों का अधिकार हो जाता है।
नीमच में विद्रोह ( 3 जून, 1857 ई. )
- विद्रोह की तिथि 3 जून, 1857 ई.।
- नेतृत्व कर्ता – हीरा सिंह और मोहम्मद अली बैग (अवध का सिपाही)
- यहां अंग्रेज अधिकारी एबोर्ट सैनिकों को वफादारी की शपथ दिलाता है।
- मोहम्मद अली बेग अंग्रेजों की वफादारी पर सवाल करता है और 3 जून, 1857 ईस्वी को विद्रोह की शुरुआत हो जाती है।
- क्रांतिकारी ‘डूंगला’ (चित्तौड़गढ़) नामक स्थान पर 40 अंग्रेजों को कैद कर देते हैं।
- मेवाड़ के पोलिटिकल एजेंट शाॅवर्स के आदेश पर मेवाड़ का महाराजा स्वरूप सिंह अंग्रेज परिवारों को छुडा़ता है और इन्हें पिछोला झील के पास जगमंदिर महल में शरण दी जाती है।
- अंग्रेज परिवारों की देखभाल की जिम्मेदारी गोकुल चंद मेहता को सौंपी जाती है।
- इसी दौरान मेवाड़ की सेना में अफवाह फैल जाती है कि आटे में जानवरों की अस्थियों का चूर्ण मिला है।
- मेवाड़ का वकील अर्जुन सिंह सैनिकों के सामने आटा चखकर विद्रोह शांत करता है।
एरिनपुरा छावनी में विद्रोह
- विद्रोह की तिथि 21/23 अगस्त, 1857 (कई किताबों में 21 और कुछ में 23 दे रखा है)
- नेतृत्व कर्ता – मोती खाँ, शिवनाथ सिंह, सूबेदार शीतल प्रसाद व तिलकराम
- एरिनपुरा में विद्रोहियों के दो दल बन जाते हैं। एक दल शिवनाथ सिंह के नेतृत्व में दिल्ली की ओर बढ़ता है और नारा दिया जाता है “चलो दिल्ली मारो फिरंगी “
- 16 नवंबर 1857 को नारनौल नामक स्थान पर क्रांतिकारियों का सामना अंग्रेजों की सेना से होता है क्रांतिकारी युद्ध हार जाते हैं और शिवनाथ सिंह क्रांति से अलग हो जाता है।
- एरिनपुरा के विद्रोहियों को आहूवा परगने का ठाकुर “कुशाल सिंह चंपावत” शरण दे देता है।
बिथौडा़ का युद्ध –
मेवाड़ का राजा तख्त सिंह व अंग्रेजों ने आऊवा के ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत से नाराज हो गए 8 सितंबर 1857 ईसवी को आऊवा पर आक्रमण कर दिया। बिथौड़ा नामक स्थान पर ओनाड़सिंह (मारवाड़ के राजा तख्त सिंह के सेनापति) व हिथकोट (अंग्रेज अधिकारी) के नेतृत्व में सेना तथा दूसरी तरफ कुशाल सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें कुशाल सिंह की सेना जीत गई और ओनाड़सिंह व हिथकोट मारे गए।
चेलावास का युद्ध / काला – गोरा का युद्ध –
बिथौड़ा युद्ध में अंग्रेजी सेना के पराजय की जानकारी मिलते ही एक तरफ एजेंट टू गवर्नर जनरल – पैट्रिक लोरेंस व मारवाड़ के पोलिटिकल एजेंट – मेक मैसन के नेतृत्व में, जबकि दूसरी तरफ कुशाल सिंह चंपावत के नेतृत्व में 18 सितंबर 1857 ई. को चेलावास नामक स्थान पर युद्ध हुआ जिसमें क्रांतिकारियों ने मेक मैसन की गर्दन काटकर आऊवा के किले के द्वार पर लटका दिया। यह देखकर लॉरेंस वहां से भाग गया।
इस युद्ध को “काला – गोरा” का युद्ध कहा जाता है।
- कुशाल सिंह का दमन करने के लिए कर्नल होम्स के नेतृत्व में 26 जनवरी 1858 ईस्वी को सेना भेजी जाती है।
- कुशाल सिंह लांबिया के ठाकुर पृथ्वी सिंह को नेतृत्व सौंपकर भाग जाता है।
- सेनापति होम्स आऊवा में लूटपाट करता है और कुशाल सिंह की कुलदेवी सुगाली माता ( 1857 की क्रांति की देवी ) की मूर्ति उठा लेता है।
- कुशाल सिंह चंपावत को शरण कोठारिया का रावत जोध सिंह देता है।
- कुशाल सिंह 8 अगस्त 1857 ईस्वी को आत्मसमर्पण कर देता है।
- कुशाल सिंह पर मेजर टेलर आयोग का गठन होता है और कुशाल सिंह निर्दोष साबित होता है।
- 1857 की क्रांति के विजय स्तंभ आऊवा (पाली) में है।
कोटा का जन विद्रोह ( 15 अक्टूबर, 1857 )
- विद्रोह की तिथि – 15 अक्टूबर, 1857
- नेतृत्व कर्ता – वकील लाला जयदयाल भटनागर, हरदयाल भटनागर, रिसालदार मेहराब खाँ
- कोटा की जनता कोटा दुर्ग में शासक राव रामसिंह, पोलिटिकल एजेंट बर्टन और कोटा के डॉ. सैंडलर तथा डॉ. कोटम को कैद कर लेती है।
- सभी अंग्रेजों की हत्या कर दी जाती है। पोलिटिकल एजेंट बर्टन की मुंडी काटकर कोटा शहर में घुमाया जाता है।
- शासक राव रामसिंह को कोटा दुर्ग में नजरबंद कर दिया जाता है।
- अंग्रेज राव रामसिंह को छुड़ाने के लिए सेनापति रॉबर्ट और करौली के शासक मदनपाल के नेतृत्व में सेना भेजते हैं।
- 31 मार्च 1858 को कोटा पर अंग्रेजों का अधिकार हो जाता है। राव रामसिंह की तोपों की सलामी घटा दी जाती है।
- करौली के शासक मदनपाल को GCI ( Grant commander stats of India) की उपाधि दी जाती है। और 17 तोपों की सलामी दी जाती है।
देवली में विद्रोह ( 10 जून, 1857 )
नीमच छावनी के विद्रोही सैनिक जब देवली से गुजरे तो यहां पर भी 5 जून 1857 ईस्वी को विद्रोह हो गया।
Note – |
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1857 की क्रांति का सर्वाधिक प्रभाव कोटा राज्य में रहा। यहाँ जनता ने 6 महिने तक शासन अपने हाथों में लिया। |
अन्य प्रमुख विद्रोह
भरतपुर में विद्रोह ( 31 मई, 1857 )
1857 ई. की क्रांति के समय भरतपुर के महाराजा जसवंत सिंह नाबालिक थे अतः वहां की शासन व्यवस्था पोलिटिकल एजेंट मॉरीसन के पास थी। भरतपुर की सेना को तात्या टोपे का मुकाबला करने के लिए अंग्रेजी सेना के साथ दौसा भेज दिया। पीछे से भरतपुर के गुर्जरों एवं मेवों ने 31 मई 1857 ई. को विद्रोह कर दिया फलस्वरूप राज्य में नियुक्त अंग्रेज अधिकारी मॉरीसन को भरतपुर छोड़कर आगरा जाना पड़ा।
अजमेर में विद्रोह
अजमेर के केंद्रीय कारागार में 9 अगस्त 1857 ईस्वी को कैदियों ने विद्रोह कर दिया जिसमें से 50 कैदी जेल से भाग छुटे।
टोंक में विद्रोह
- टोंक का नवाब वजीर खाँ / वजीरूद्दौला खाँ अंग्रेजों का साथ देता है लेकिन उसका मामा मीर आलम खाँ क्रांतिकारियों का सहयोग करता है और दिल्ली सेना भेजता है।
- टोंक के एक सामंत नासिर मुहम्मद खां ने तांत्या टोपे का साथ दिया और टोंक पर अपना अधिकार कर लिया।
- बाद में जयपुर के पॉलिटिकल एजेंट ईडन ने उसको मुक्त करवाया।
धौलपुर में विद्रोह
धौलपुर के महाराजा भगवंत सिंह अंग्रेजों के वफादार थे। अक्टूबर, 1857 ईसवी में ग्वालियर व इंदौर से 5000 विद्रोही सैनिक धौलपुर राज्य में घुस गए। जहां पर राज्य की सेना व कई वरिष्ठ अधिकारी क्रांतिकारियों से मिल गए और वहां पर गुर्जर देवा के नेतृत्व में विद्रोहियों ने 27 अक्टूबर, 1857 ईसवी में राज्य पर अपना अधिकार कर भगवंत सिंह को कैद कर लिया, जिसे 2 माह बाद पटियाला नरेश की सेना ने धौलपुर पहुंचकर दिसंबर में विद्रोहियों का सफाया कर मुक्त कराया।
ध्यान रहे- |
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धौलपुर राज्य की एकमात्र रियासत थी जहां पर विद्रोह बाहर (ग्वालियर व इंदौर) के क्रांतिकारियों ने किया तो, इस विद्रोह को दबाने वाले सैनिक भी बाहर (पटियाला) के थे। |
तांत्या टोपे
- वास्तविक नाम – रामचंद्र पांडुरंग
- जन्म महाराष्ट्र में होता है लेकिन कार्यक्षेत्र – ग्वालियर, कानपुर और झांसी रहा।
- तात्या टोपे की युद्ध पद्धति छापामार युद्ध पद्धति थी।
तात्या टोपे का राजस्थान में प्रथम प्रवेश –
- 8 अगस्त 1857 को तात्या मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) आता है।
- 9 अगस्त, 1857 कुआड़ा नामक स्थान पर कोठारी नदी के किनारे तात्या का युद्ध अंग्रेज सेनापति रोबर्ट से होता है।
- तात्या युद्ध हार कर भाग जाता है।
तात्या टोपे का राजस्थान में दूसरा प्रवेश –
- 11 दिसंबर 1857 को तात्या बांसवाड़ा आता है।
- राजस्थान में तात्या ने बांसवाड़ा, झालावाड़ और टोंक आदि के शासकों को हराकर स्वयं शासक बना।
- अंग्रेज अधिकारी ‘लिन माउथ’ के नेतृत्व वाली सेना से हारकर तात्या मध्य प्रदेश लौट जाता है।
तात्या का राजस्थान में तीसरा और अंतिम प्रवेश –
- 21 जनवरी, 1859 को तात्या सीकर आता है।
- सीकर में तात्या की सहायता यहां का सामंत भैरों सिंह करता है अंग्रेज भैरों सिंह की हत्या कर देते हैं।
- सीकर में ही तात्या की मुलाकात इसके मित्र नरवर के जागीरदार मान सिंह नरूका से होती है नरूका के विश्वासघात के कारण तात्या पकड़ा जाता है।
- 18 अप्रैल, 1859 शिवपुरी, (उज्जैन, मध्य प्रदेश) में तात्या को फांसी दे दी जाती है।
नोट – तात्या जैसलमेर रियासत को छोड़कर संपूर्ण राजपूताना में घुमा।
क्र.सं. | विद्रोह का स्थान | विद्रोह की तिथि |
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1. | नसीराबाद में विद्रोह | 28 मई, 1857 ई. |
2. | भरतपुर राज्य में विद्रोह | 31 मई, 1857 ई. |
3. | नीमच में विद्रोह | 03 जून, 1857 ई. |
4. | देवली छावनी में विद्रोह | 10 जून, 1857 ई. |
5. | टोंक राज्य में विद्रोह | 14 जून, 1857 ई. |
6. | अलवर राज्य में विद्रोह | 11 जुलाई, 1857 ई. |
7. | अजमेर के केंद्रीय कारागार में विद्रोह | 09 अगस्त, 1857 ई. |
8. | एरिनपुरा के सैनिकों का विद्रोह | 21 अगस्त, 1857 ई. |
9. | आऊवा में विद्रोह | 08 सितम्बर, 1857 ई. |
10. | धौलपुर राज्य में विद्रोह | 12 अक्टूबर, 1857 ई. |
11. | कोटा राज्य में विद्रोह | 15 अक्टूबर, 1857 ई. |
राजस्थान के वे शासक जिन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया –
1. बीकानेर शासक सरदार सिंह
- सरदार सिंह एकमात्र ऐसा शासक था जो क्रांति में स्वंय सेना लेकर विद्रोहियों को दबाने के लिए पंजाब के हाँसी, सिरसा, हिसार, बाडलूू (पंजाब) आदि क्षेेत्रों में जाकर युद्ध किया।
- अंग्रेजों ने सरदार सिंह को टीबी परगने के 41 गांव उपहार में दिए।
2. अलवर शासक बन्ने सिंह
- 1857 की क्रांति के समय क्रांतिकारियों ने आगरा के दुर्ग में अंग्रेजों को कैद कर लिया अतः इन्हें छुड़ाने के लिए अलवर का शासक बन्ने सिंह अपनी सेना लेकर क्रांतिकारियों से युद्ध लडा़।
3. करौली शासक मदनपाल
- कोटा के महाराव रामसिंह द्वितीय को क्रांतिकारियों ने कोटा दुर्ग में नजरबंद कर दिया तो अंग्रेजी सेना के साथ करौली का शासक मदनपाल एक बड़ी सेना लेकर कोटा गया और महाराव राम सिंह द्वितीय को आजाद करवाया।
- अंग्रेजों ने करौली के शासक मदनपाल की इस मदद के बदले उसे “जी.आई.सी.” की उपाधि व कुछ करों में विशेष छूट देकर 17 तोपों की सलामी दी।
ध्यान रहे – |
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करौली राज्य में स्थित हिंडौन की पहाड़ी पर मोहम्मद खां के नेतृत्व में विद्रोह हुआ लेकिन करौली के शासक मदनपाल ने उसकी हत्या कर इस विद्रोह दबाया। |
4. मारवाड़ का शासक तख्तसिंह –
- 1857 की क्रांति के समय आऊवा के ठाकुर कुशालसिंह चंपावत ने क्रांतिकारियों को शरण दी। ए.जी.जी. पैट्रिक लॉरेंस व मारवाड़ के पोलिटिकल एजेंट मेक मैसन के कहने पर तख्त सिंह ने अपने सेनापति औनाड़सिंह पवार व राजमल लौडा के नेतृत्व में 1000 सैनिक, 12 तोपें व 1 लाख नगद देकर आऊवा पर आक्रमण करने के लिए भेजा।
5. जयपुर शासक रामसिंह –
- राम सिंह ने 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों के लिए अपना संपूर्ण खजाना खोल दिया अर्थात राम सिंह ने अंग्रेजों की तन-मन-धन से सहायता की।
- अंग्रेजों ने रामसिंह द्वितीय को कोटपूतली की जागीर और सितार – ए – हिंद की उपाधि दी।
ध्यान रहे – |
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जयपुर रियासत राज्य की एकमात्र रियासत थी जिसमें राजा के साथ वहां की आम जनता ने भी अंग्रेजों का साथ दिया। |
वक्तव्य –
इतिहासकार प्री. कार्ड ने ठीक ही कहा है “यदि राजस्थान के राजाओं ने देशभक्त क्रांतिकारियों को नेतृत्व प्रदान किया होता तो स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास कुछ ओर ही होता।”