राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं – पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार राजस्थान का इतिहास पूर्व पाषाण काल से प्रारंभ होता है। आज से करीब एक लाख वर्ष पहले मनुष्य मुख्यतः बनास नदी के किनारे या अरावली के उस पार की नदियों के किनारे निवास करता था। आदिम मनुष्य पत्थर के औजारों की मदद से भोजन की तलाश में हमेशा एक स्थान से दूसरे स्थान को जाते रहते थे, इन औजारों के कुछ नमूने रैध, बैराठ और भानगढ़ के आसपास पाए गए हैं।
प्राचीनकाल में उत्तर-पश्चिमी राजस्थान में वैसा मरुस्थल नहीं था जैसा वह आज है। इस क्षेत्र से होकर सरस्वती और दृशद्वती जैसी विशाल नदियां बहा करती थीं। इन नदी घाटियों में हड़प्पा, ‘ग्रे-वैयर’ और रंगमहल जैसी संस्कृतियां फली-फूलीं। यहां की गई खुदाइयों से खासकर कालीबंगा के पास, पांच हजार साल पुरानी एक विकसित नगरीय सभ्यता का पता चला है। हड़प्पा, ‘ग्रे-वेयर’ और रंगमहल संस्कृतियां सैकडों दक्षिण तक राजस्थान के एक बहुत बड़े इलाके में फैली हुई थीं।
भारतीय इतिहास को अध्ययन की दृष्टि से तीन भागों में बांटते हैं
- प्रागैतिहासिक काल
- आद्य ऐतिहासिक काल
- ऐतिहासिक काल
1. प्रागैतिहासिक काल
- इस काल के लिखित साक्ष्य / प्रमाण उपलब्ध नहीं है
- इस काल में मानव जंगली,असभ्य और बर्बर था।
- औजार के रूप में पत्थर या पाषाण को काम में लेता था।
इस काल को निम्न तीन भागों में बांटते हैं –
- पुरापाषाण काल
- मध्य पाषाण काल
- नवपाषाण काल :
- नवपाषाण काल में मानव ने पत्थर के सुख समाचार बनाएं जिन्हें माइक्रोलिथ कहा जाता है
- इस काल में पहिए का आविष्कार हुआ जो प्रथम वैज्ञानिक आविष्कार था।
- इस काल में आग की खोज हुई थी।
2. आद्य ऐतिहासिक काल
- इस काल के लिखित साक्ष्य उपलब्ध है।
- इस काल में मानव सभ्य था, गांव और शहर बसाए।
- इस काल के लिखित साक्ष्य उपलब्ध है लेकिन अपठनीय है जैसे :- सिंधु लिपि / भाव चित्रात्मक लिपि
- इस काल में सिंधु सभ्यता और वैदिक सभ्यता का अध्ययन किया जाता है।
3. ऐतिहासिक काल
- भारत के संदर्भ में इसका प्रारंभ 6 ईसा पूर्व से माना जाता है।
- ऐतिहासिक काल को तीन भागों में बांटते है-
- प्राचीन काल
- मध्यकाल
- आधुनिक काल
राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं
1. सिंधु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता
(सिंधु घाटी सभ्यता अपने शुरुआती काल में, 3250-2750 ईसापूर्व)
- भारत कीसबसे प्राचीन सभ्यता सिंधु / हड़प्पा सभ्यता है।
- सर्वप्रथम 1826 ई. में हड़प्पा का उल्लेख चार्ल्स मेंशन द्वारा किया गया है।
- सिंधु सभ्यता का उत्खनन सर्वप्रथम 1920 ईस्वी में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित हड़प्पा जिले में रवी नदी के किनारे दयाराम साहनी एवं माधव स्वरूप ने करवाया।
- यहां से सुनियोजित नगर निर्माण के अवशेष प्राप्त हुए थे। अतः इसी जगह के नाम से इसे हड़प्पा सभ्यता कहा गया।
- सिंधु घाटी सभ्यता को ही हम प्रथम नगरीय एवं कांस्य युगीन सभ्यता भी कहते हैं।
ध्यान रहे – सरस्वती नदी का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद के दसवें मंडल में संवत 53 के 8वें मंत्र में मिलता है ऋग्वेद में 10 मंडल 1028 सूक्त है इन सुक्तों में से कुछ खंडों को यूनेस्को द्वारा विश्व प्राकृतिक धरोहर घोषित कर दिया गया है। सरस्वती नदी के लिए महाकवि कालिदास ने ‘अंतः सलिला’ विशेषण का प्रयोग किया है। |
प्रमुख शहर
सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल निम्न है-
- हड़प्पा (पंजाब पाकिस्तान)
- मोहेनजोदड़ो (सिंध पाकिस्तान लरकाना जिला)
- लोथल (गुजरात)
- कालीबंगा( राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में)
- बनवाली (हरियाणा के हिसार जिले में)
- आलमगीरपुर( उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में)
- सूत कांगे डोर( पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में)
- कोट दीजी( सिंध पाकिस्तान)
- चन्हूदड़ो ( पाकिस्तान )
- सुरकोटदा (गुजरात के कच्छ जिले में)
2. कालीबंगा सभ्यता
- स्थल – हनुमानगढ़
- नदी – घग्घर (प्राचीन सरस्वती)
- खोज – 1952 में आमलानन्द घोष द्वारा
- उत्खनन – 1961 ई. से 1969 ई. तक ब्रजवासी लाल (बी. वी. लाल)एवं बालकृष्ण थापर (बी. के. थापर) द्वारा।
- कालीबंगा एक सिन्धी शब्द है जिसका हिंदी अनुवाद ‘काले रंग की चूड़ियां’ है ।
- कालीबंगा सभ्यता राजस्थान में सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल है।
- कालीबंगा सभ्यता आद्य ऐतिहासिक काल, कांस्य युगीन तथा नगरीय सभ्यता है।
- कालीबंगा सभ्यता के नगर को दो भागों में बांट सकते हैं–
- दूर्ग क्षेत्र या गढ़ी क्षेत्र
- निचला नगर
- कालीबंगा सभ्यता के दोनों भाग दुर्गीकृत है।
कांस्य युगीन कालीबंगा सभ्यता
विशेषताएं –
- यहां के नगरों की सड़कें ‘समकोण’ पर काटती हुई है। अतः यहां पर बने मकानों की पद्धति को ऑक्सफोर्ड पद्धति / जाल पद्धति / ग्रीक पद्धति या चेम्स फोर्ड पद्धति भी कहते हैं।
- यहां के मकानों के दरवाजे सड़क की ओर ने खुलकर पीछे की ओर खुलते थे।
- यहां के भवन पहले कच्ची ईंटों से व बाद में पक्की ईंटों से बने हुए मिले हैं। इन ईंटों की लंबाई – चौड़ाई 30 : 15 : 7.5 के रूप में थी।
- कालीबंगा से प्राप्त मकान कच्ची ईंटों से बने हुए हैं इसलिए कालीबंगा को ‘दीन – हीन’ बस्ती भी कहा जाता है
- खुदाई के दौरान मकानों में दरारें पड़ी मिली। इससे विश्व में सर्वप्रथम भूकंप के साक्ष्य मिले।
- विश्व में सर्वप्रथम लकड़ी की नाली के अवशेष यहीं से मिले हैं।
- विश्व में एकमात्र हल से जूते हुए खेतों के अवशेष मिले हैं।दोहरे जूते हुए खेत मिले।
- कालीबंगा सभ्यता से 7 अग्नि वैदिकाएं (हवन कुंड) मिली है अग्नि वैदिकाओं में जानवरों की अस्थियां मिली है जो पशु बलि का साक्ष्य है।
- कालीबंगा से एक छिद्रित खोपड़ी मिली है जिससे कपालछेदन क्रिया (शल्य चिकित्सा वैज्ञानिक भाषा में हाइड्रोपोलिस) का प्रमाण मिलता है। यह विश्व में सर्वप्रथम यहीं से प्राप्त हुआ है।
- कालीबंगा से स्वास्तिक चिन्ह प्राप्त हुए हैं। इनका प्रयोग वास्तु दोष को दूर करने में होता था।
- कालीबंगा से कलश शवाधान के साक्ष्य प्राप्त हुए।
➤ कालीबंगा सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता, पश्च हड़प्पा सभ्यता व प्राक् हड़प्पा सभ्यता के समकालीन है।
➤ इसे ‘नगरीय सभ्यता’ भी कहते हैं।
➤ उत्खनन के दौरान काँसे के उपकरण मिले हैं अतः इसे हम कांस्य युगीन सभ्यता भी कहते हैं।
➤ C-14 पद्धति / कार्बन डेटिंग पद्धति के अनुसार कालीबंगा सभ्यता का समय 2300 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व।
3. आहड़ सभ्यता
- ताम्र युगीन सभ्यता 4000 साल पुरानी सभ्यता है।
- जिला – उदयपुर (आहड़ कस्बा)
- उत्खनन – सर्वप्रथम 1953 ईस्वी में अक्षय कीर्ति व्यास ने तत्पश्चात 1956 ईस्वी में रतन चंद्र अग्रवाल (आर. सी. अग्रवाल) ने तथा सर्वाधिक उत्खनन 1961 ईस्वी में पूना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर धीरजलाल साँकलिया (एस. डी. साँकलिया) ने किया।
- आहड़ सभ्यता से सर्वाधिक तांबे के उपकरण मिले हैं इसलिए इसे ताम्र नगरी कहते हैं।
- आहड़ सभ्यता को मृतकों के टीलों की सभ्यता भी कहा जाता है।
- आहड़ सभ्यता से अनाज के कोठरे, आटा पीसने की चक्की, मिट्टी के बर्तन तथा तांबे की 6 मुद्राएं मिली है।
- यहां से हमें छपाई के ठप्पे चित्रित बर्तन मिले हैं।
- यहां से हमें मिट्टी से (टेरोकोटा पद्धति से) बनी वृषभ (बैैल) आकृति की मूर्ति प्राप्त हुई है जिसे ‘बनासियल बुल’ की संज्ञा दी गई है।
- यहां एक जगह एक साथ छह चूल्हे मिले है। यहां बड़े परिवारों या सार्वजनिक भोजन बनाने की व्यवस्था की जाती थी।
- संयुक्त परिवार थे। पितृ सत्तात्मक समाज था।
आहड़ सभ्यता का समृद्धकाल 1900 ई. पूर्व से 1200 ई. पूर्व तक माना जाता है।
4. बैराठ सभ्यता
- स्थल – विराटनगर (जयपुर), भीम की डूंगरी, बीजक की पहाड़ी, गणेश की डूंगरी में बाणगंगा नदी के मुहाने पर।
- नदी – बाणगंगा नदी / अर्जुन की गंगा
- खोज – 1936 ई. में रायबहादुर दयाराम साहनी द्वारा।
- बैराठ सभ्यता से लोहे के औजार मिले हैं अतः इसे लोहयुगीन सभ्यता भी कहते हैं।
- विराट नगर के राजा विराट के यहां पांडवों ने अपना अज्ञातवास निकाला था।
- विराट नगर का सर्वप्रथम उल्लेख महाभारत में मिलता है जो मत्स्य जनपद की राजधानी थी। अतः यह सभ्यता महाभारत कालीन है।
- भीम द्वारा भीमताल तालाब बनाया गया।
- मौर्य काल – यहां सम्राट अशोक का भाम्ब्रु अभिलेख मिला है।
भाम्ब्रु अभिलेख अशोक के बौद्ध धर्म में विश्वास की जानकारी देता है। भाम्ब्रु अभिलेख की खोज 1837 ई. में कैप्टन बर्ट द्वारा की गई। |
- यहां से अशोक की पंचमार्क का मुद्राएं, आहत सिक्के मिले हैं।
- बैराठ से बोद्ध मठ, गोल मंदिर और खंडहर भवन मिले हैं।
- हुण शासक तोरमाण की मुद्राएं मिली है।
5. गणेश्वर सभ्यता
- स्थान – खंडेला की पहाड़ी (नीमकाथाना, सीकर)
- नदी – काँतली नदी
- सर्वप्रथम खोज 1972 ई. में रतनचंद्र अग्रवाल द्वारा।
- 2800 ईसा पूर्व की सभ्यता।
- ताम्रयुगीन सभ्यताओं की जननी माना जाता है।
- गणेश्वर को पुरातत्व का पुष्कर कहा जाता है।
- गणेश्वर से तांबा गलाने की भट्टी मिली है, भट्टी के पास धातु पंक मिला है।
- गणेश्वर सभ्यता के लोगों को धातु शोधक की जानकारी थी।
- गणेश्वर सभ्यता से तांबे के बाण व मछली पकड़ने का कांटा मिला है, यहां के लोगों को रसायन विज्ञान का ज्ञान था तथा लोग मांसाहारी थे।
- कांतली नदी नित्य प्रवाही नदी थी, मछली पालन यहां का व्यवसाय था।
- यहां के मकान पत्थरों के बने हुए थे तथा एकमात्र स्थान जहां पत्थर के बाँध प्राप्त हुए हैं।
- सिंधु सभ्यता में तांबे की आपूर्ति गणेश्वर सभ्यता से होती थी।
6. बागोर सभ्यता
- यह सभ्यता भीलवाड़ा जिले में कोठारी नदी पर स्थित है।
- यहां से भारत के प्राचीनतम (5000 वर्ष पूर्व के) पशुपालन के अवशेष मिले हैं।
- बागोर भारत का सबसे संपन्न पाषाणीय सभ्यता स्थल है, यहां सर्वाधिक 14 प्रकार की कृषि किए जाने के अवशेष मिले हैं।
- बागोर सभ्यता को आदिम संस्कृति का संग्रहालय कहा जाता है।
7. सुनारी सभ्यता
- यह सभ्यता झुंझुनू जिले में स्थित है।
- उत्खनन > 1981 – 82 ई. में
8. गरदडा़ सभ्यता
- बूंदी जिले में छाजा नदी के किनारे।
- इस सभ्यता से देश की पहली बर्ड राइडिंग रॉक पेंटिंग (शैलचित्र) प्राप्त हुए।
9. रैढ़ सभ्यता
- टोंक जिले की निवाई तहसील के पास।
- एशिया का सबसे बड़ा सिक्कों का भंडार मिला है
- इसे प्राचीन भारत का टाटा नगर कहते हैं।
10. बयाना सभ्यता
- भरतपुर जिले में स्थित इस सभ्यता से हमें गुप्तकालीन सिक्के व नील की खेती के साक्ष्य से मिले हैं।
11. भीनमाल सभ्यता
- यह सभ्यता जालौर जिले के भीनमाल कस्बे में स्थित है।
- यह सभ्यता जालौर जिले के भीनमाल कस्बे में स्थित है।
- यहां से हमें ईसा की प्रारंभिक शताब्दी की सामग्री प्राप्त हुई है।
12. नोह सभ्यता
- यह सभ्यता भरतपुर जिले के नोह गांव में रूपारेल नदी के किनारे स्थित है।
- यह सभ्यता महाभारत कालीन व लोह कालीन है।
- राजस्थान का एकमात्र नोह (भरतपुर) ऐसा प्राचीन सभ्यता का स्थल है जहां पर ताम्र युगीन, आर्य कालीन एवं महाभारत कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।